udaan-e-dil (उड़ान - ऐ -दिल )
Monday, June 3, 2013
यकीं
यकीं
मेरे यकीं पर अक्सर उनको गुमा होता है
सोचते है तक्दीर में ऐसा क्यों होता है
कभी खामोशियो में उनकी हम राज ढूढते है
कभी बहती फिजा में उनके निशा ढूढते है
कभी निगाह में उनकी अलफाज़ ढूढते है
तो कभी बेज़बा की अता में ज़बा ढूढते है
फिर अक्सर वव्त के परवाज पर गुमा होता है
सोचते है तक्दीर में ऐसा क्यों होता है
कभी उलझनों में उनको घिरा पाते है
खमोशियॊ में उनकी रहनुमा ए दिल की जुबा पाते है
मंजिलो की कशमकश में अक्सर उलझा पाते है
जानते है कशमकश का रास्ता हमसे बाबस्ता होता है
फिर अक्सर वव्त के परवाज पर गुमा होता है
सोचते है तक्दीर में ऐसा क्यों होता है
मेरे यकीं पर अक्सर उनको गुमा होता है
सोचते है तक्दीर में ऐसा क्यों होता है
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