Monday, June 3, 2013

यकीं

                                                    यकीं 

             मेरे यकीं   पर  अक्सर उनको गुमा होता है 

                                       सोचते है तक्दीर में ऐसा क्यों होता है 

कभी खामोशियो में  उनकी हम राज ढूढते है 

कभी बहती फिजा में उनके निशा  ढूढते है 

कभी निगाह में उनकी अलफाज़ ढूढते है

तो कभी बेज़बा की अता में ज़बा ढूढते है 

                                                           

                                                  फिर अक्सर वव्त के परवाज पर  गुमा होता है 

                                                   सोचते है तक्दीर में ऐसा क्यों होता है 

कभी उलझनों में उनको  घिरा पाते है 

खमोशियॊ में उनकी रहनुमा  ए  दिल की जुबा पाते है 

मंजिलो की कशमकश में अक्सर उलझा पाते है

जानते है कशमकश का रास्ता हमसे बाबस्ता होता है 


                                                  फिर अक्सर वव्त के परवाज पर  गुमा होता है 

                                                                            सोचते है तक्दीर में ऐसा क्यों होता है 

                                                    मेरे यकीं   पर  अक्सर उनको गुमा होता है 

                                                                                        सोचते है तक्दीर में ऐसा क्यों होता है 



Wednesday, September 12, 2012

अपना उसे बनाना गर मेरे बस में होता

अपना उसे बनाना  गर मेरे बस में होता 
लौट आता अगर आना  मेरे बस में होता

आँखों में उनकी जाता सूरत बदल बदल कर 
खाव्बों में आना जाना  गर मेरे बस में होता

चेहेरे  को मुस्कराहट से मैं सजाये रखता हूँ 
ए यार मुस्कुराना  गर  मेरे बस में होता

दुनिया से ख़त्म करके रख देता रंज ओ गम को 
बज़्म-ऐ - तरब सजाना गर  मेरे बस में होता

क़दमों में उनके लाकर तारे बेखेर  देता 
तारो को तोड़ लाना गर  मेरे बस में होता

लाता  ना नाम कभी उस बेवफा का लब पर 
उसकी वफ़ा को भुलाना गर  मेरे बस में होता 


Friday, September 7, 2012

समझ न पाए आप मुझे


 जो  भी हुआ कोई  खेद नहीं 
बस इतना  है संताप मुझे 
आप ने   जीवन को समझा 
 पर समझ न पाए आप मुझे 


हर कहा आप का सच माना 

औरो  की बात ना मान सका 
आँखों की भाषा पदता रहा 
दिल का  सच ना  जान सका 
सजा मिली है जो भी हमें 
मन्जूर है हर इन्साफ मुझे 
पर खता तो मेरी बतलादो 
चाहे मत करना माफ़ मुझे 



आप ने   जीवन को समझा 
 पर समझ न पाए आप मुझे 


मात्र वही सच्चा मित्र नहीं होता 
जिसको तुमने स्वीकारा 
मात्र वही सारांश  नहीं होता 
जिसके आगे जीवन हारा 
हर सिक्के के दो पहलु है 
क्या करना पुण्य और पाप मुझे 

आप ने   जीवन को समझा 
पर समझ न पाए आप मुझे 

Wednesday, January 25, 2012

COMPLEX BUT ADMIRABLE...

Sometime, you come across with people who are blend of emotions and aspirartions...blend of pain and relief..blend of rise and fall...blend of maturity and innocence...blend laughter and silence. The more you know them...more you revisit your opinion about them.
For past one week reconciling my grey matter for the same and after yesterday evening come to conclusion that some people are above words of appreciation...
These line for her...


Her smile is like a gentle brook
Bubbling along its way,


Unmindful of the path ahead,
Be it night or day!


Her eyes like liquid pools
That torments our soul.


Their depths so unfathomable,
An unreachable goal!


She casts a glance and looks away,
Her eyes, their deed they've done.


Slain one more aching heart,
One more battle won!


When she smiles, the sun comes out
Like on a hot summer's day.


And like a soothing balm
She takes the pain away!



Thursday, December 8, 2011

माँ मगर वो सुख नही है जो तुम्हारे प्यार में है..............

यहाँ हर ओर चेहरों की चमक जब भी है मिलती मुस्कुराती है,
यहाँ पाकर इशारा ज़िन्दगी लंबी सड़क पर दौड़ जाती है,
सुबह का सूर्य थकता है तो खंभों पर चमक उठती हैं शामें,
यहाँ हर शाम प्यालों में लचकती है, नहाती है
दुःख ठिकाना ढूँढता है, सुख बहुत रफ़्तार में है..
माँ मगर वो सुख नही है जो तुम्हारे प्यार में है..............

यहाँ कोई धूप का टुकडा नही खेला किया करता है आंगन में,
सुबह होती यूँ ही, थपकियों के बिन,कमरे की घुटन में
नित नए सपने बुने जाते यहा हैं खुली आंखों से,
और सपने मर भी जाएँ तो नही उठती है कोई टीस मन में
घर की मिटटी, चांद, सोना, सब यहा बाज़ार में है...
माँ मगर वो....................

ओ मेरे प्रियतम! हमारे मौन अनुभव हैं लजाते,
हम भला इस शोर-की नगरी में कैसे आस्था अपनी बचाते,
प्रेम के अनगिन चितेरे यहा सड़कों पर खडे किल्लोल करते,
रात राधा,दिवस मीरा संग, सपनो का नया बिस्तर लगाते,
प्रेम की गरिमा यहाँ पर देह के विस्तार में है...
हां मगर वो............

कह री दुनिया ? दे सकेगी कभी मुझको मेरी माँ का स्नेह-आँचल,
दे सकेंगे क्या तेरे वैभव सभी,मिलकर मुझे, दुःख-सुख में संबल,
क्या तू देगी धुएं-में लिपटे हुये चेहरों को रौनक??
थकी-हारी जिन्दगी की राजधानी,देख ले अपना धरातल,
पूर्व की गरिमा,तू क्यों अब पश्चिमी अवतार में है??
माँ मगर वो........................