जो भी हुआ कोई खेद नहीं
बस इतना है संताप मुझे
आप ने जीवन को समझा
पर समझ न पाए आप मुझे
हर कहा आप का सच माना
औरो की बात ना मान सका
आँखों की भाषा पदता रहा
दिल का सच ना जान सका
सजा मिली है जो भी हमें
मन्जूर है हर इन्साफ मुझे
पर खता तो मेरी बतलादो
चाहे मत करना माफ़ मुझे
आप ने जीवन को समझा
पर समझ न पाए आप मुझे
मात्र वही सच्चा मित्र नहीं होता
जिसको तुमने स्वीकारा
मात्र वही सारांश नहीं होता
जिसके आगे जीवन हारा
हर सिक्के के दो पहलु है
क्या करना पुण्य और पाप मुझे
आप ने जीवन को समझा
पर समझ न पाए आप मुझे
yeh toh kisi pyar mein tokar khaye aasiq ke jabaan hai tumhe kya hua mishra babu
ReplyDeletegud one
ReplyDeletehmm tote dil ki aawazz
ReplyDeleteToo gud
ReplyDeleteमिश्रा बाबू आपके बाप भी ऐसी कविता नहीं लिख सकते ....मेरी कविता चुराने से पहले अपनी औकात तो दकेह लेते
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