हँसने का हँसाने का हुनर ढूंढ रहे हैं
हम लोग दुआओं में असर ढूंढ रहे हैं
हम लोग दुआओं में असर ढूंढ रहे हैं
अब कोई हमें ठीक-ठिकाने तो लगाए
घर में हैं मगर अपना ही घर ढूंढ रहे हैं
घर में हैं मगर अपना ही घर ढूंढ रहे हैं
जब पाँव सलामत थे तो रस्ते में पड़े थे
अब पाँव नहीं हैं तो सफ़र ढूंढ रहे हैं
अब पाँव नहीं हैं तो सफ़र ढूंढ रहे हैं
क्या जाने किसी रात के सीने में छिपी है
सूरज की तरह हम भी सहर ढूंढ रहे हैं
सूरज की तरह हम भी सहर ढूंढ रहे हैं
हालात बिगड़ने की नई मंज़िलें देखो
सुकरात के हिस्से का ज़हर ढूंढ रहे हैं
सुकरात के हिस्से का ज़हर ढूंढ रहे हैं
कुछ लोग अभी तक भी अंधेरे में खड़े हैं
कुछ बात करने की सहर ढूंढ रहे हैं
हँसने का हँसाने का हुनर ढूंढ रहे हैं
हम लोग दुआओं में असर ढूंढ रहे हैं
हम लोग दुआओं में असर ढूंढ रहे हैं
really a nice one
ReplyDeleteAwesome sir.....
ReplyDeletei knw d person who is mentioning this must be d person of d real world ....gud one
ReplyDeleteawesome
ReplyDeletea very transparent piece of writing .. keep the same pace mishra ji
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