जो दीप नहीं बुझते तूफानों में भी,
उजियारा उनका अभिनन्दन करता है|
जो जलते केवल जलने को,
उजियारा उनका अभिनन्दन करता है|
जो जलते केवल जलने को,
दब जाते स्वयम अंधियारे तले,
जो दीप नहीं बुझते तूफानों में भी,
उजियारा उनका अभिनन्दन करता है|
जो पग नहीं रुकते कांटो पे भी,
जग उनका अभिनन्दन करता है,
गिरना, फिर उठना जीवन का क्रम है,
गिर के भी जो उठाना जाने,
सोपान उसका अभिनन्दन करता है|
जो निश्चय करते हर श्वास में,
तप करते आत्म तेज पुंज से,
विष पी शिव ज्योति धारण करते,
जो बाण नहीं मुड़ते बिंध जाने पे,
लक्ष्य उनका अभिनन्दन करता है|
जो दीप नहीं बुझते तूफानों में भी,
उजियारा उनका अभिनन्दन करता है|
उजियारा उनका अभिनन्दन करता है|
जो पग नहीं रुकते कांटो पे भी,
जग उनका अभिनन्दन करता है,
गिरना, फिर उठना जीवन का क्रम है,
गिर के भी जो उठाना जाने,
सोपान उसका अभिनन्दन करता है|
जो निश्चय करते हर श्वास में,
तप करते आत्म तेज पुंज से,
विष पी शिव ज्योति धारण करते,
जो बाण नहीं मुड़ते बिंध जाने पे,
लक्ष्य उनका अभिनन्दन करता है|
जो दीप नहीं बुझते तूफानों में भी,
उजियारा उनका अभिनन्दन करता है|
apko bhi abhinandanb iss rachna ke liye
ReplyDeleteThis is a shameless copy paste of someone else's poem. I read this poem in year 2006 and I know the poetess personally, the poetess is Suman. You will have copyright issues on this.
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