Sunday, November 29, 2009

MY NATION

Everyone has some dream for the nation as being the true citizen of a nation. Actually I view my INDIA as a holistic family : a bunch of colours, a bunch of emotions , bunch of differentiation, bunch of religion and lot more . But unfortunaletly today the nation condition is quite horrible. Everyone wants a revoultion but not from his side , from the neighbourside and this nature is responsible for our present position. We have to start from some point. Let help some boy who is deprived of education. Let help a old lady in getting pension . Let help the a girl surviving in sarcastic rituals. Let raise your voice against the anamoly of system and list of this" let" is too long. So if you really want a change start it by your side and give your bit . If all of us will be able to do same the ,the India will be like this :

 

Where the mind is free from the chains of fear

 Where the road ahead always seems clear

 Where doors of opportunity open to all

 Where there is no division, no border, no wall

 Where the head is held aloft and high

 Where ambition can soar to the sky

 Where temples, mosques, churches stand side by side

 Where in every field, we have won glory and pride

 Where truth is a religion, a way of life

 Where united we stay in times of strife

 Where technology exists with traditions grand

 This is my dream for India, my motherland

 

MOTHER


The first word that comes out is 'MUMMY'
But don't forget they are god's DUMMY
Mummy is like shade of the tree
She is the only one who teaches her child to see
She gives her child feathers to fly
And also teaches what is the sky...
God sent his angels to everyone
For some they are cool as moon or bright as a sun
Mummy is the word which one cannot forget
They are like wind which do not rest
She is the symbol of love and care
She supports everyone that's why we like to dare......

ये ज़िन्दगी संघर्ष है



कभी  दर्द  है , कभी  हर्ष  है ,

ये  ज़िन्दगी  संघर्ष   है .

कभी  हर  है , कभी  जीत   है
 यही  ज़िन्दगी  की   रीत  है
 है  जीता  वही  इस  जग  में
 जो  हार  को  भी  गले  लगता

कभी दर्द है , कभी हर्ष है ,

ये ज़िन्दगी संघर्ष है .

न  रुकेगा  तू , न  झुकेगा  तू
पथ  की  बाधाओं  से
न  डरेगा  तू , बस  लडेगा  तू
तेरे  जीवन  का  लक्ष्य
वो  तारो  भरा  आकाश  है .

कभी दर्द है , कभी हर्ष है ,

ये ज़िन्दगी संघर्ष है .

लक्ष्य  को  ही  अपना  सब  कुछ  जिसने  मन  है ,
गिर   कर  उठाना  उठ  कर  संभालना
जिस  ने  जाना  है
पाया  उसी  ने  यहाँ  उत्कर्ष  है .
कभी दर्द है , कभी हर्ष है ,


ये ज़िन्दगी संघर्ष है .

ख्वाब मरते नहीं

जिस्म  मरते  हैं , ख्वाब  मरते  नहीं

आप  क्यूँ  मेरा  यकीं  करते  नहीं

माँ  की  आँखों  में  बेटी  की  शादी  का  ख्वाब
बेटा  बड़ा  आदमी  बने , ये  पिता   का  ख्वाब
पोते - पोतिओं  को  खिलाना  दादा  का  ख्वाब
पोते  की  शादी  देखूं , होता  है  ये  दादी  का  ख्वाब
 आरज़ू  मरती  नहीं , ख्वाब  मरते   नहीं
आप  क्यूँ  मेरा  यकीं  करते  नहीं


होते  है  दादी - नानी  की  कहानियो  में  ख्वाब
बहुत  लाज़मी  है  ज़िन्दगी  में  ख्वाब
छुपे  होते  हैं  हर  अल्फाज   हर  मन  में  ख्वाब
 ये  ख्वाब  अपने  दिलों , अपनी  सांसों  की  तरह
 रेज़ा - रेज़ा  होकर  बिखरते  नहीं
 आप  क्यूँ  मेरा  यकीं  करते  नहीं



ख्वाब , रौशनी   और  हवा  की  तरह  होते  हैं
 ख्वाब , आजाद  मिजाज़  खुशबुओं  के  झोंके  हैं
 मानिंद - ऐ - वक़त  ये  भी  कहीं  टहरते  नहीं
 आप  क्यूँ  मेरा  यकीं  करते  नहीं

ख्वाब  प्रेरणा  हैं ,ख्वाब  सत्रोत  हैं
 हर  हकीकत , हकीकत  से  पहले
 समझो  एक  ख्वाब  ही  होता  है
 सोचो ! चाँद  पर  जाने  का  अगर
हमारे  ज़हन  में  कोई  ख्वाब  नहीं  होता
 तो  हम  कभी  चाँद  पर  उतरते   नहीं
आप  क्यूँ  मेरा  यकीं  करते  नहीं

Stars Will Shine Again

Feeling the breeze, so sorrow filled.



Annexed with holy ordain.



Raise you lips to sing all thrilled.



As stars will shine again.







For hunger seeps in stomach that ails.



Tears roll as they explain



Let night too heavily sail, through this dark



As stars will shine again







You have no feathers to rest you back



Floor is all distain.



Take sand as bed, under sky for nap



As stars will shine again.







No threads to adorn your baffled soul



Torn makings to sustain



Collect the lunar rays and drape



As stars will shine again.







Miseries and pains will loose domain



All happiness to ascertain



For survival transforms births to lives.



As stars will shine again.










Potential

The potential you hold is a pot of gold that is yet to be discovered


The belief in yourself and a little help are all it needs to uncover.


Don’t listen to those who ridicule goals and put you in a slump


Just open your eyes and look to the skies,


You’ll soon be up there soaring.


And waving good bye to those who sighed,


But now you’ll hear them roaring


It’s not yourself they didn’t believe in,


It’s just themselves they were deceiving


Because people who don’t believe in themselves will never believe in


anyone else

(Extract of 'The Winners Monologue')

Saturday, November 28, 2009

याद


ज़िन्दगी भी कितनी अनिश्चित होती है | पता ही नहीं चलता कब हमारे  अपने हम्मे  सफ़र में अकेला छोड़ जाते है और रह जाती उन अपनों की यादे | जिस तरह जैसे कोई परिंदा घरोधा  छोड़ दूसरे आसमान का रुख कर गया हो | मेरे पिताजी जो उसी परिदे की तरह मेरा साथ बचपन में ही  छोड़ गये थे पर आज भी यू लगता की जैसे वो  मेरे साथ हो............
यह ग़ज़ल उन सभी के लिए है  जिनके दिल में अपनों को खोने की कसक है  और आज भी   उनका साया  वो महसूस  करते है   

चिठ्ठी   न  कोई    सन्देश
जाने  वो  कौन  सा  देश  जहा  तुम  चलऐ  गए
चिठ्ठी  न  कोई  सन्देश ......

इस  दिल  पे  लगा  के  ठेस  जाने  वो  कौन  सा  देश
जहा  तुम  चले  गए ...
एक  आह  भरी  होगी  हमने  न  सुनी  होगी
जाते  जाते  तुमने  आवाज़  तो  दी  होगी
हर  वक़्त  येही  है  ग़म , उस   वक़्त   कहा   थे  हम
कहा   तुम  चले  गए

चिठ्ठी  न  कोई  सन्देश  जाने  वो  कौन  सा  देश
जहा  तुम  चले  गए  जहा  तुम  चले  गए
इस  दिल  पे  लगा  के  ठेस  जाने  वो  कौन  सा  देश
जहा  तुम  चले  गए ...



हर  चीज़  पे  अश्कों  से  लिखा  है  तुम्हारा  नाम
ये  रास्तऐ  घर  गलियाँ  तुम्हे  कर  न  सके  सलाम
है  दिल  में  रह  गयी  बात , जल्दी  से  छुड़ा  कर  हाथ
कहा  तुम  चले  गए

चिठ्ठी न  कोई  सन्देश  जाने  वो कौन  सा  देश
जहा  तुम  चले  गए  जहा  तुम  चले  गए
इस  दिल  पे  लगा  के  ठेस  जाने  वोह  कौन  सा  देश
जहाँ  तुम  चले  गए ...

अब  यादों  के  कांटे  इस  दिल  में  चुभते  हैं
न  दर्द  ठहेरता  है  न  आंसों  रुकते  हैं
तुम्हे  धुंद   रहा  है  प्यार , हम  कैसे  करें  इकरार
कहा  तुम  चले  गए

चिठ्ठी न कोई सन्देश जाने वो कौन सा देश

जहा तुम चले गए जहा तुम चले गए

माँ …

हम  बचपन  में  माँ  को  बहुत  परेशान  कर  देते  हैं ,
लेकिन   वो    हमसे  कभी  खफा  नहीं  होती ...
बाद  में  जब  अपनी  गलती  का  एहसास  होता , फिर    लगता  है  की  माँ  इतनी  अच्छी   क्यूँ  होती  है ...
जगजीत  सिंह जी   की  यह  ग़ज़ल  मुझे  बहुत  पसंद  है ,
उम्मीद  है   आप  भी  पसंद  करेंगे ..


                                             माँ …






                                                माँ  सुनाओ  मुझे  वोह  कहानी ,
                                                 जिसमे  राजा  न  हो , न  हो   रानी  ….

              जो  हमारी  तुम्हारी  कथा  हो ,
              जो  सभी  के  ह्रदय  की  व्यथा  हो …
              गंध  जिसमे  भरी  हो  धरा  की ,
              बात  जिसमे  न  हो  अप्सरा  की ,
              हो  न  परियां  जहां  आसमानी …
                                                                 माँ  सुनाओ  मुझे  वो   कहानी  


   जिसमे  राजा  न  हो , न  हो  रानी …
   वो  कहानी  जो  हँसाना  सिखा  दे ,
   पेट  की  भूख  को  जो  भुला  दे …
   जिसमे  सच  की  भरी  चांदनी  हो , 
             जिसमे  उम्मीद  की  रौशनी  हो ,
             जिसमे  न  हो  कहानी  पुरानी …
                                                माँ  सुनाओ  मुझे  वो   कहानी  
                                                 जिसमे  राजा  न  हो , न  हो  रानी …



मोको कहां ढूढे रे बन्दे




मोको कहां ढूढे रे बन्दे
मैं तो तेरे पास में



ना तीर्थ मे ना मूर्त में
ना एकान्त निवास में
ना मंदिर में ना मस्जिद में
ना काबे कैलास में

                                     मैं तो तेरे पास में बन्दे
                                     मैं तो तेरे पास में
ना मैं जप में ना मैं तप में
ना मैं बरत उपास में
ना मैं किर्या कर्म में रहता
नहिं जोग सन्यास में
नहिं प्राण में नहिं पिंड में
ना ब्रह्याण्ड आकाश में
ना मैं प्रकति प्रवार गुफा में
नहिं स्वांसों की स्वांस में

खोजि होए तुरत मिल जाउं
इक पल की तालाश में
कहत कबीर सुनो भई साधो
मैं तो हूँ विश्वास में


  - कबीर

हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले


हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले

बहुत निकले मेरे अरमाँ, लेकिन फिर भी कम निकले













डरे क्यों मेरा कातिल क्या रहेगा उसकी गर्दन पर
वो खून जो चश्म-ऐ-तर से उम्र भर यूं दम-ब-दम निकले


निकलना खुल्द से आदम का सुनते आये हैं लेकिन
बहुत बे-आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले

भ्रम खुल जाये जालीम तेरे कामत कि दराजी का
अगर इस तुर्रा-ए-पुरपेच-ओ-खम का पेच-ओ-खम निकले


मगर लिखवाये कोई उसको खत तो हमसे लिखवाये
हुई सुबह और घर से कान पर रखकर कलम निकले


हुई इस दौर में मनसूब मुझसे बादा-आशामी
फिर आया वो जमाना जो जहाँ से जाम-ए-जम निकले

हुई जिनसे तव्वको खस्तगी की दाद पाने की
वो हमसे भी ज्यादा खस्ता-ए-तेग-ए-सितम निकले


मुहब्बत में नहीं है फ़र्क जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफिर पे दम निकले


जरा कर जोर सिने पर कि तीर-ऐ-पुरसितम निकले
जो वो निकले तो दिल निकले, जो दिल निकले तो दम निकले


खुदा के बासते पर्दा ना काबे से उठा जालिम
कहीं ऐसा न हो याँ भी वही काफिर सनम निकले


कहाँ मयखाने का दरवाजा 'गालिब' और कहाँ वाइज़
पर इतना जानते हैं, कल वो जाता था के हम निकले

Friday, November 27, 2009

ज़िन्दगी

साँस जाने बोझ कैसे जीवन का ढोती रही

नयन बिन अश्रु रहे पर ज़िन्दगी रोती रही
एक नाज़ुक ख्वाब का अंजाम कुछ ऐसा हुआ
मैं तड़पता रहा इधर वो उस तरफ़ रोती रही
भूख , आंसू और गम ने उम्र तक पीछा किया
मेहनत के रुख पर ज़र्दियाँ , तन पर फटी धोती रही
उस महल के बिस्तरे पे सोते रहे कुत्ते , बिल्लियाँ
धूप में पिछवाडे एक बच्ची छोटी सोती रही
तंग आकर मुफलिसी मन खुदखुशी कर की मगर
दो गज कफ़न को लाश उसकी बाट जोती रही
'दीपक' बशर की ख्वाहिशों का कद इतना बढ गया
ख्वाहिशों की भीड़ में कहीं ज़िन्दगी खोती रही


कुछ दिल को मनाने को
  कुछ आरज़ू  सजाने  को
     कुछ ज़िन्दगी आज़माने  को
         कुछ नज़्म गुनगाने  को
            दिल करता है और बन जाता है My collection

सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्तां हमारा



  यू कहे तो देश प्रेम की भावना हम सब के दिल में होती है पर ज़िन्दगी की इस तेज़ रफ़्तार न जाने वो कहा चली जाती है , पर फिर भी हर एक इंसान जो माँ शब्द का अर्थ जानता है ,वो जनता है देश की मिटटी जो उसे पालती  है वो मिटटी ही  देश रूपी माँ होती है .
       वो माँ जो खुद आगे से कभी कुछ नही  मांगती  
वो माँ जो हमारे  नन्हे-(२)  कदमो का बोझ उटती है
            वो माँ जो अन्नपूर्णा   बनती है
वो  माँ एक हाड  मांस  के पुतले को  देश प्रेम   सीखाती  है
मोहमद इकबाल की यह कविता  प्रगाड़ करती है उसी माँ की तस्वीर को जो हम सबके दिलो में रची बसी है

सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्तां हमारा
हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिसतां हमारा







गुरबत में हों अगर हम, रहता है दिल वतन में
समझो वहीं हमें भी, दिल हो जहाँ हमारा







परबत वो सबसे ऊँचा, हमसाया आसमाँ का
वो संतरी हमारा, वो पासवां हमारा







गोदी में खेलती हैं, जिसकी हज़ारों नदियाँ
गुलशन है जिसके दम से, रश्क-ए-जिनां हमारा







ऐ आब-ए-रौंद-ए-गंगा! वो दिन है याद तुझको
उतरा तेरे किनारे, जब कारवां हमारा







मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम वतन हैं, हिन्दोस्तां हमारा







यूनान, मिस्र, रोमां, सब मिट गए जहाँ से ।
अब तक मगर है बाकी, नाम-ओ-निशां हमारा







कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-जहाँ हमारा







'इक़बाल' कोई मरहूम, अपना नहीं जहाँ में
मालूम क्या किसी को, दर्द-ए-निहां हमारा







सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्तां हमारा
हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिसतां हमारा ।






सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,


देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है ।



करता नहीं क्यों दुसरा कुछ बातचीत,

देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफिल मैं है ।



रहबर राहे मौहब्बत रह न जाना राह में

लज्जत-ऐ-सेहरा नवर्दी दूरिये-मंजिल में है ।



यों खड़ा मौकतल में कातिल कह रहा है बार-बार

क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है ।



ऐ शहीदे-मुल्को-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार

अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफिल में है ।



वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमां,

हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है ।



खींच कर लाई है सब को कत्ल होने की उम्मींद,

आशिकों का जमघट आज कूंचे-ऐ-कातिल में है ।



सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,

देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है ।

__



रहबर - Guide

लज्जत - tasteful

नवर्दी - Battle

मौकतल - Place Where Executions Take Place, Place of Killing

मिल्लत - Nation, faith

नर हो न निराश करो मन को

नर हो न निराश करो मन को
- मैथिलीशरण गुप्त (Maithili Sharan Gupt)

नर हो न निराश करो मन को
कुछ काम करो कुछ काम करो
जग में रहके निज नाम करो
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो न निराश करो मन को ।

संभलो कि सुयोग न जाए चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना
अखिलेश्वर है अवलम्बन को
नर हो न निराश करो मन को ।

जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ
फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ
तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो
उठके अमरत्व विधान करो
दवरूप रहो भव कानन को
नर हो न निराश करो मन को ।

निज गौरव का नित ज्ञान रहे
हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे
सब जाय अभी पर मान रहे
मरणोत्तर गुंजित गान रहे
कुछ हो न तजो निज साधन को
नर हो न निराश करो मन को ।
हार नहीं होती


लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशीश करने वालों की हार नहीं होती,

नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती हैं,
चढ़ती दीवारों पर सौं बार फीसल्ती हैं।
मन का विश्वास रगों मैं साहस भरता हैं,
चढ़कर गीरना गीर्कर चढ़ना न अखरता हैं,
आखीर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,

कोशीश करने वालों की हार नहीं होती।



डुबकीयाँ सीन्धु में गोताखोर लगाता हैं,
जा जाकर खाली हाथ लौट आता हैं,
मीलते ना सहज ही मोटी गहरे पानी में,
बढ़ता दूना उत्साह इसी हैरानी में,
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
कोशीश करने वालों की हार नहीं होती।



असफलता एक चुनौती है - स्वीकार करो
क्या कमी रह गई देखो और सुधार करो,
जब तक न सफल हो नींद चेन की त्यागो तुम,
संघर्षो का मैदान छोड़ मत भागो तुम,
कुछ कीये बीना ही जय जयकार नहीं होती,
कोशीश करने वालों की हार नहीं होती।



हरिवंश राय बच्चन





पुस्तकों में है नहीं


छापी गई इसकी कहानी
हाल इसका ज्ञात होता
है न औरों की जबानी
अनगिनत राही गए
इस राह से उनका पता क्या
पर गए कुछ लोग इस पर
छोड़ पैरों की निशानी
यह निशानी मूक होकर
भी बहुत कुछ बोलती है
खोल इसका अर्थ पंथी
पंथ का अनुमान कर ले।



पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले।



यह बुरा है या कि अच्छा
व्यर्थ दिन इस पर बिताना
अब असंभव छोड़ यह पथ
दूसरे पर पग बढ़ाना
तू इसे अच्छा समझ
यात्रा सरल इससे बनेगी
सोच मत केवल तुझे ही
यह पड़ा मन में बिठाना
हर सफल पंथी यही
विश्वास ले इस पर बढ़ा है
तू इसी पर आज अपने
चित्त का अवधान कर ले।



पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले।



है अनिश्चित किस जगह पर
सरित गिरि गह्वर मिलेंगे
है अनिश्चित किस जगह पर
बाग वन सुंदर मिलेंगे
किस जगह यात्रा खतम हो



जाएगी यह भी अनिश्चित
है अनिश्चित कब सुमन कब
कंटकों के शर मिलेंगे
कौन सहसा छू जाएँगे
मिलेंगे कौन सहसा
आ पड़े कुछ भी रुकेगा
तू न ऐसी आन कर ले।
पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले।




हरिवंश राय बच्चन  :जो बीत गई सो बात गई


जीवन में एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया
अंबर के आंगन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फ़िर कहाँ मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अंबर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई

जीवन में वह था एक कुसुम
थे उस पर नित्य निछावर तुम
वह सूख गया तो सूख गया
मधुबन की छाती को देखो
सूखी कितनी इसकी कलियाँ
मुरझाईं कितनी वल्लरियाँ
जो मुरझाईं फ़िर कहाँ खिलीं
पर बोलो सूखे फूलों पर
कब मधुबन शोर मचाता है
जो बीत गई सो बात गई

जीवन में मधु का प्याला था
तुमने तन मन दे डाला था
वह टूट गया तो टूट गया
मदिरालय का आंगन देखो
कितने प्याले हिल जाते हैं
गिर मिट्टी में मिल जाते हैं
जो गिरते हैं कब उठते हैं
पर बोलो टूटे प्यालों पर
कब मदिरालय पछताता है
जो बीत गई सो बात गई

मृदु मिट्टी के बने हुए हैं
मधु घट फूटा ही करते हैं
लघु जीवन ले कर आए हैं
प्याले टूटा ही करते हैं
फ़िर भी मदिरालय के अन्दर
मधु के घट हैं,मधु प्याले हैं
जो मादकता के मारे हैं
वे मधु लूटा ही करते हैं
वह कच्चा पीने वाला है
जिसकी ममता घट प्यालों पर
जो सच्चे मधु से जला हुआ
कब रोता है चिल्लाता है
जो बीत गई सो बात गई
वो सभी लोग जो ज़िन्दगी से एक और मौका चाहते है वो इस कविता को ज़रूर पढ़े :

    छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ बहाने वालों
कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है


सपना क्या है, नयन सेज पर

सोया हुआ आँख का पानी

और टूटना है उसका ज्यों

जागे कच्ची नींद जवानी

गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों

कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं मरा करता है


माला बिखर गयी तो क्या है

खुद ही हल हो गयी समस्या

आँसू गर नीलाम हुए तो

समझो पूरी हुई तपस्या

रूठे दिवस मनाने वालों, फटी कमीज़ सिलाने वालों

कुछ दीपों के बुझ जाने से, आँगन नहीं मरा करता है


खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर

केवल जिल्द बदलती पोथी

जैसे रात उतार चाँदनी

पहने सुबह धूप की धोती

वस्त्र बदलकर आने वालों, चाल बदलकर जाने वालों

चँद खिलौनों के खोने से, बचपन नहीं मरा करता है


लाखों बार गगरियाँ फ़ूटी,

शिकन न आयी पर पनघट पर

लाखों बार किश्तियाँ डूबीं,

चहल पहल वो ही है तट पर

तम की उमर बढ़ाने वालों, लौ की आयु घटाने वालों,

लाख करे पतझड़ कोशिश पर, उपवन नहीं मरा करता है।

लूट लिया माली ने उपवन,

लुटी ना लेकिन गंध फ़ूल की

तूफ़ानों ने तक छेड़ा पर,

खिड़की बंद ना हुई धूल की

नफ़रत गले लगाने वालों, सब पर धूल उड़ाने वालों

कुछ मुखड़ों के की नाराज़ी से, दर्पण नहीं मरा करता है।

Meri Udaan


Udaan yu kahe to kuch jayada nahi hai iss parinde ki

phir bhi chah hai dil ke parro se aakash mein udne ki