Saturday, October 22, 2011

अभिनन्दन

जो दीप नहीं बुझते तूफानों में भी,
उजियारा उनका अभिनन्दन करता है|

जो जलते केवल जलने को,

दब जाते स्वयम अंधियारे तले,
जो दीप नहीं बुझते तूफानों में भी,
उजियारा उनका अभिनन्दन करता है|

जो पग नहीं रुकते कांटो पे भी,

जग उनका अभिनन्दन करता है,
गिरना, फिर उठना जीवन का क्रम है,
गिर के भी जो उठाना जाने,
सोपान उसका अभिनन्दन करता है|

जो निश्चय करते हर श्वास में,

तप करते आत्म तेज पुंज से,
विष पी शिव ज्योति धारण करते,
जो बाण नहीं मुड़ते बिंध जाने पे,
लक्ष्य उनका अभिनन्दन करता है|

जो दीप नहीं बुझते तूफानों में भी,

उजियारा उनका अभिनन्दन करता है|