Wednesday, September 12, 2012

अपना उसे बनाना गर मेरे बस में होता

अपना उसे बनाना  गर मेरे बस में होता 
लौट आता अगर आना  मेरे बस में होता

आँखों में उनकी जाता सूरत बदल बदल कर 
खाव्बों में आना जाना  गर मेरे बस में होता

चेहेरे  को मुस्कराहट से मैं सजाये रखता हूँ 
ए यार मुस्कुराना  गर  मेरे बस में होता

दुनिया से ख़त्म करके रख देता रंज ओ गम को 
बज़्म-ऐ - तरब सजाना गर  मेरे बस में होता

क़दमों में उनके लाकर तारे बेखेर  देता 
तारो को तोड़ लाना गर  मेरे बस में होता

लाता  ना नाम कभी उस बेवफा का लब पर 
उसकी वफ़ा को भुलाना गर  मेरे बस में होता 


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