Wednesday, June 22, 2011

इन सहमे हुए शहरों की फजा कुछ कहती है

इन सहमे हुए शहरों की फजा कुछ कहती है


कभी तुम भी सुनो, ये धरती क्या कुछ कहती है

ये ठिठरी हुई लम्बी रातें कुछ पूछती हैं

ये खामोशी आवाज़नुमा कुछ कहती है

सब अपने घरों में लम्बी तान के सोते हैं

और दूर कहीं कोयल की सदा कुछ कहती है

कभी भोर भए, कभी शाम पड़े, कभी रात गए

हर आन बदलती रुत की हवा कुछ कहती है

नासिर आशोबे- ज़माना से गाफ़िल न रहो

कुछ होता है जब ख़ल्के-खुदा कुछ कहती है

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