Sunday, June 26, 2011

समर्पण

दोस्तों यह मेरा एक समर्पण है इंसान की शक्ल मेरे भगवान् को........ मेरी अपनी माँ को ........


धड़कते, सांस लेते, रुकते-चलते मैंने देखा है,

कोई तो है जिसे अपने में पलते मैंने देखा है.

तुम्हारे ख़ून से मेरी रगों में ख़्वाब रोशन हैं,

तुम्हारी आदतों में ख़ुद को ढ़लते मैंने देखा है.

मेरी ख़ामोशियों में तैरती हैं तेरी आवाज़ें,

तेरे सीने में अपना दिल मचलते मैंने देखा है.

किसी की रहनुमाई की मुझे अब क्या ज़रूरत है,

तुम्हारा नूर अपने साथ चलते मैंने देखा है.

मुझे मालूम है उनकी दुआएं साथ चलती हैं,

सफ़र की मुश्किलों को हाथ मलते मैंने देखा है.

तुम्हारा अज़्म है जो ख़्वाब में आवाज़ देता है,

ख़ुद अपने आपको नींदों में चलते मैंने देखा है.

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