Wednesday, June 22, 2011

आईने से

आईने से कब तलक तुम अपना दिल बहलाओगे


छाएँगे जब-जब अंधेरे ख़ुद को तन्हा पाओगे।



हर हसीं मंज़र से यारों फ़ासले क़ायम रखो

चाँद गर धरती पे उतरा देखकर डर जाओगे।



आरज़ू, अरमान, ख्व़ाहिश, जुस्तजू, वादे, वफ़ा

दिल लगाकर तुम ज़माने भर के धोखे खाओगे।



आजकल फूलों के बदले संग की सौग़ात है

घर से निकलोगे सलामत, जख्म़ लेकर आओगे।



ज़िंद़गी के चंद लम्हे ख़ुद की ख़ातिर भी रखो

भीड़ में ज़्यादा रहे तो ख़ुद भी गुम हो जाओगे।



हाले-दिल हमसे न पूछो दोस्तों रहने भी दो

इस तकल्लुफ़ में तो तुम अपने चलन से पाओगे।

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