हम बचपन में माँ को बहुत परेशान कर देते हैं ,जो हमारी तुम्हारी कथा हो ,
लेकिन वो हमसे कभी खफा नहीं होती ...
बाद में जब अपनी गलती का एहसास होता , फिर लगता है की माँ इतनी अच्छी क्यूँ होती है ...
जगजीत सिंह जी की यह ग़ज़ल मुझे बहुत पसंद है ,
उम्मीद है आप भी पसंद करेंगे ..
माँ …
माँ सुनाओ मुझे वोह कहानी ,
जिसमे राजा न हो , न हो रानी ….
जो सभी के ह्रदय की व्यथा हो …
गंध जिसमे भरी हो धरा की ,
बात जिसमे न हो अप्सरा की ,
हो न परियां जहां आसमानी …
माँ सुनाओ मुझे वो कहानी
जिसमे उम्मीद की रौशनी हो ,
जिसमे राजा न हो , न हो रानी …
वो कहानी जो हँसाना सिखा दे ,
पेट की भूख को जो भुला दे …
जिसमे सच की भरी चांदनी हो ,
जिसमे न हो कहानी पुरानी …
माँ सुनाओ मुझे वो कहानी
जिसमे राजा न हो , न हो रानी …
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